कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥ एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥ स्तवं यः प्रभाते नरः शूलपाणे पठेत् सर्वदा भर्गभावानुरक्तः । तज्ञमज्ञान – पाथोधि – घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं । लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।। पूजन रामचंद्र जब कीन्हा । https://shivchalisas.com